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सिर्फ “पीरिया-भीत” मत समझना, पीलीभीत में दिखेंगे होली के अनेक रंग

तराई के पीलीभीत में बिखरे हैं होली के अनोखे रंग

सतीश मिश्र अचूक, संपादक

ब्रज की होली तो देश दुनिया में मशहूर है ही जहां लट्ठ खाकर लोग खुश होते हैं। ब्रज प्रांत के ही पीलीभीत जनपद व आसपास में भी होली के अजब गजब रंग बिखरे हुए हैं। इन्हें एक साथ देखें तो पूरा जिला खूबसूरत गुलदस्ता सा नजर आता है।

एक दूसरे पर रंग डालकर, गले मिलकर, होली गीत गाकर और कचरी पापड़ व गुझिया आदि पकवानों से

आवभगत करके तो हर जगह पर्व मनाया जाता है परंतु नबाबों के गांव शेरपुरकला में होलियारे गालियां देकर फगुआ (होली का नजराना) वसूलते हैं। मुस्लिम भाई इन गालियों का कभी बुरा नहीं मानते और बखुशी फगुआ देते हैं। माधोटांडा में होली पर एक दिन महिलाओं का राज रहता है और रंग व फगुआ वसूले जाने के डर से पुरुष घर छोड़कर भाग जाते हैं। घुँघचाई के युवाओं की कपड़ा फाड़ होली व कई जगह कीचड़ से होली खेलने की परंपराएं भी अजब गजब हैं। धमाल टीमों के मनोहारी प्रदर्शन व स्वांग का प्रस्तुतिकरण भी पीलीभीत में अभी तक जीवंत है। यहां बसे बंगाली, थारू व पूर्वांचलवासी भी अपने अंदाज में होली मनाते हैं।

इस लिंक से सजीव देखिए

https://youtu.be/Lz8SdEguWDg?si=uBEFAqV321_60xJA

पड़ोसी देश नेपाल में ही रंग गुलाल के साथ फगुआ प्रथा जारी है। होली पर्व के इन विविध रंगों पर आइए एक समग्र नजर डालते हैं।

शेरपुर में गलियों की बौछार करके वसूलते हैं फगुआ

यूं तो होली का त्योहार जनपद भर में हर्षोल्लास से मनाया जाता है लेकिन पीलीभीत में नवाबों के शेरपुर गांव का रिवाज जरा अलग हटकर है। धुलेहड़ी के दिन रंग-गुलाल से सराबोर होलियारों की टोलियां गांव की गलियों में निकल पड़ती है।

आकाशवाणी गोरखपुर से सुनिए कैसी है ब्रज प्रांत के पीलीभीत की होली

https://youtu.be/1w1RTopowK8?si=9UEeFnzkAVg1LUpl

धमाल करते हुए टोलियां नवाब साहब की कोठी के सामने पहुंच जाती हैं। इसके बाद तो होली के गीतों के बीच ही गालियों की बौछार होने लगती है। इसी दौरान मुस्लिम समुदाय के लोग सामने आ जाते हैं तो गालियों का क्रम और तेज होने लगता है। ऐसे में हिदू भाइयों की

गालियों पर कोई मुस्लिम नाराज नहीं होता बल्कि सभी हंसते हुए हुरियारों को बतौर नजराना कुछ रुपये देकर उन्हें विदा करते हैं। यह कार्यक्रम कई घंटे तक चलता है। होरियारे मुस्लिम परिवारों के घरों के बाहर यही सब दोहराते हुए फगुआ वसूलने के बाद ही वहां से हटते हैं।
मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले इस गांव में सैकड़ों हिदू परिवार भी रहते हैं। जब होली आती है तो हिदू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी उत्साहित हो जाते हैं। मुस्लिम समुदाय के लोग होलिका की तैयारी में सहयोग से कभी पीछे नहीं हटते।

इस लिंक से सजीव देखिए शेरपुर की होली

https://youtu.be/JOzj07da3tU?si=tlkNXahsyGkXSDkQ

गांव के बुजुर्गों का कहना है कि होली का यह रिवाज नवाबी दौर से ही चला आ रहा है। पीढि़यां बदल गईं लेकिन रिवाज कायम है। गांव की आबादी करीब चालीस हजार की है। लगभग दो हजार हिदू हैं। खास बात यह कि इस गांव मे कभी भी सांप्रदायिक तनाव की समस्या नहीं आती है। होली पर हिदू समुदाय के लोग हुड़दंग करते हैं लेकिन कोई इसका बुरा नहीं मानता।

माधोटांडा में महिलाओं की होली भी कमाल की

इस लिंक से सजीव देखिए

https://youtu.be/E8f_ENljTF0?si=9i8kCWIew-Cvskp2

रजवाड़ों के गांव माधोटांडा में एक अजब-गजब होली की परंपरा प्रमुख है। होली वाले दिन तो सभी रंग खेलते हैं लेकिन माधोटांडा में होली के अगले दिन महिलाओं के ही होली खेलने की पुरानी परंपरा आज भी पूरी तरह जीवंत है। जिसे पूरे उत्साह के साथ आज भी मनाया जा रहा है।

आकाशवाणी लखनऊ से सुनिए माधोटांडा की होली के बारे में

https://youtu.be/OYLPvuHT3g4?si=8fWmLPzbWcSzw7Q4

हमेशा घूंघट में रहने वाली तमाम महिलाएं होली के अगले दिन सड़कों पर पिचकारी लेकर निकलती हैं। जो भी पुरुष जहां मिलता है उसे रंग से सराबोर कर दिया जाता है। इसके साथ ही फगुआ (होली का नेग) वसूलने के बाद ही महिलाएं उसे छोड़ती हैं।

गांव की लीना सिंह से सुनिए…

https://youtu.be/jSCRBk9GGrU?si=dnOjWF9_lzhsC_fj

महिलाओं के डर से उस दिन जहां गांव के लोग घर छोड़कर जंगल का रुख कर लेते हैं वहीं सड़कों पर भी सन्नाटा छा जाता है। सड़क से गुजरने वाले लोगों को भी महिला दल रंग से सराबोर कर देता है।

गांव की मंजू देवी ने बताया..

https://youtube.com/shorts/MxOWz7l8Gys?si=deKASrfkqjYVBTLs

वाहन रोककर महिलाएं फगुआ वसूलती हैं। पुराने समय में इस तरह की परंपरा पूरे जोश पर थी लेकिन अब जमाना बदलने के साथ ही हुड़दंग कुछ कम हुआ है। नई-नवेली बहुएं एवं लड़कियां इस परंपरा पर अधिक विश्वास नहीं करतीं। हालांकि इस परंपरा से एक बात साफ हो जाती है कि पुराने जमाने से ही महिलाओं को यह अधिकार देकर समाज में उनके महत्व को स्वीकारा गया।

यहां की महिलाएं अपनी इस परंपरा के चलते कई बड़े अंग्रेज अफसरों को रंगकर फगुआ वसुलतीं थीं।

दिव्यांशी और निक्कू ने बताया

https://youtube.com/shorts/zhTaixvG5mg?si=xLUimsOlEUQ92e3v

अब ठाकुरद्वारा मंदिर पर एकत्र होकर माता बहनें पर्व मनाकर पुरानी परंपरा निभाती हैं। यहां की होली महिला सशक्तिकरण का अद्भुत नमूना है।

87 वर्ष की शीला देवी ने पत्रकार निर्भय सिंह को होली के बारे में बताया

https://youtu.be/PzuJ6t52mGw?si=M4MlIkEY-Gq0Uonb

घुँघचाई के युवा कपड़ा फाड़कर खेलते हैं होली

पूरनपुर के घुंघचाई में युवाओं की टोली होली खेलती है और जो भी हुड़दंग के दौरान मिल जाए उसके कपड़े फाड़ते हैं। हालांकि महिलाओं के साथ ये हरकत नहीं की जाती। केवल लड़के और पुरुष ही इस तरह की होली मनाते हैं। कपड़ा फाड़ने पर कोई नाराज नहीं होता, बल्कि गले लगकर एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। कई गांव में युवा कपड़े फाड़कर पेडों पर लटका देते हैं और यह रंग बिरंगे परिधान साल भर इसी तरह लटके रहते हैं।

गालों पर कीचड़ मलकर भी खेली जाती हैं होली

पीलीभीत जनपद के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में युवा वर्ग एक दूसरे पर कीचड़ फेंक कर भी होली का पर्व मनाता है। युवा अक्सर तालाबों के किनारे पहुंच जाते हैं और वहां से मिट्टी

निकाल कर एक दूसरे पर फेंकते हैं। मिट्टी चेहरे पर भी मली जाती है। गालों पर कीचड़ मलकर सुखद अनुभव होलियारे करते हैं। कई जगह गोबर की बौछार भी देखने को मिलती है। इससे युवाओं के चेहरे पहचान में नहीं आते। जमकर हुड़दंग करने के बाद यह लोग वहीं तालाब, नदियों व नहरों में नहा कर बाद में नए कपड़े पहन कर पर्व मनाते हैं। कीचड़ वाली होली काफी फेमस है। युवाओं का हुड़दंग देखने लोग जुटते हैं। पक्के रंग, निकिल पेंट, पुराने इंजन ऑयल से भी होली खेली जाती है। परंतु यह सेहत के लिए नुकसानदेह है।

सतरंगी दुनिया हिंदी दैनिक में प्रकाशित समाचार

धमाल टीमों का प्रदर्शन बेमिसाल, स्वांग भी मस्त

इस लिंक से देखिए वीडियो

https://youtu.be/6JNrnDnMhh0?si=i5Wjxxz-JHHfIj74

ग्रामीण क्षेत्रों में होली से पहले ही धमाल टीमें तैयार हो जाती हैं। जिन परिवारों में साल भर में किसी की मृत्यु होती है उनके दरवाजे पर जा कर यह धमाल टीमें जब गायन वादन करती हैं तभी से गमी (गम) दूर होना माना जाता है। धमाल टीमें हाथों में मोर पंख, ढोलक, मजीरा, चिमटा आदि लेकर होली गीत गाने वाली टीमें होती हैं। होली गीतों पर इन्हें थिरकते भी देखा जा सकता है।

कई युवा साड़ी पहनकर व लिल्ली घोड़ी पर सवार होकर धमाल करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह टीमें काफी अच्छा प्रदर्शन करती हैं।
पीलीभीत की धमाल टीमें अलीगढ़ में आयोजित संस्कार भारती के प्रांतीय कार्यक्रम में भी पुरस्कार जीत चुकी हैं। होली के 15 दिन बाद तक यह धमाल टीमें गांव-गांव जाकर प्रदर्शन करती हैं। इनका समापन चैत अमावस्या पर देवी मंदिरों पर प्रदर्शन करने के साथ ही साल भर के लिए हो जाता है।

धमाल टीमें दिन में जहां होली के गीत गाती हैं वही रात में इनके द्वारा स्वांग प्रस्तुत किया जाता है। स्वांग को एक तरह से फूहड़ ड्रामा कहा जा सकता है। इससे महिलाओं व बच्चों को दूर रखा जाता है। पुरुष काफी अश्लील तरह का प्रदर्शन करके अश्लील शब्दों से स्वांग प्रस्तुत करते हैं। इसका ग्रामीण क्षेत्रों में काफी क्रेज होता है। कई तरह की गालियां खाकर व अपने पर भोंड़ा अभिनय करवा कर भी लोग खुशी-खुशी मस्त होकर खुशियां मनाते हैं। हालांकि अब स्वांग गुम सा होता जा रहा है परंतु अभी भी पीलीभीत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वांग देखने को मिल ही जाता है लेकिन सिर्फ होली बाद के 15 दिन ही इस कला का प्रदर्शन किया जाता है। स्वांग में कई बार कपड़े उतार कर भी पुरुष पात्र अजब तरह की प्रस्तुतियां देते हैं। युवाओं से लेकर बृद्धजनों की कला इन प्रदर्शनों में मुखर होती है। हालांकि स्वांग की चर्चा साल भर होती रहती है।

इस लिंक से देखें वीडियो

https://youtu.be/6JNrnDnMhh0?si=i5Wjxxz-JHHfIj74

 

बंगाली समाज, पूर्वांचलवासी व नेपालियों की भी अजब परंपराएं

पीलीभीत में बंगाली समाज, थारू व पूर्वांचल के लोग भी निवास करते हैं। पड़ोस में ही नेपाल राष्ट्र है। इन लोगों के यहां होली के किस तरह के रंग हैं यह बताना भी जरूरी है। बंगाली समाज के लोग रात भर राधाकृष्ण मंदिर पर जगराता करते हैं। सुबह भगवान राधाकृष्ण की मूर्ति साथ लेकर गांव-गांव गली-गली घूमकर रंग खेलते हैं और दोपहर में नए कपड़े पहन कर एक दूसरे को गले मिलकर होली की शुभकामनाएं देते हैं। बंगाली गुझिया मेहमानों को पड़ोसी जाती है। शाम को मंदिर पर भंडारा भी होता है और भजन-कीर्तन भी किया जाता है। पूर्वांचलवासी भी रंग खेल कर होली की खुशियां साझा करते हैं। होली गीतों पर लोग थिरकते भी नजर आ जाते हैं।

इस लिंक से गौरव देवल से जानें होली मनाने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

https://youtu.be/63lQlvABqCM?si=9L09lmXUC566MQqP

राम जी की ससुराल में भी होली का हल्ला

नेपाल राष्ट्र के लोग सीमावर्ती क्षेत्र में जमकर रंग खेलते हैं। पहले नेपाल से कुछ लोग फगुआ मांगने भी भारत आते थे परंतु पिछले कुछ सालों से यह प्रथा काफी कम हुई है। नेपाल के लोगों को मिलते ही हजारा व रमनगरा क्षेत्र के लोग रंग से सराबोर कर देते हैं। जब भारतीय नेपाल पहुंचते हैं तो उन्हें भी खूब रंगा जाता है। नेपाल में पानी की बौछार भी की जाती है। दोनों देशों के नागरिकों की आवभगत भी होली पर्व पर जमकर होती है। काठमांडू में फाल्गुन पूर्णिमा पर खम्भा गाड़ कर उसपर रंग बिरंगे कपड़े टांगे जाते हैं।

वहां भारत से एक दिन पहले ही त्योहार मनाया जाता है जबकि तराई में अपने देश की तर्ज पर ही जश्न होता है। जिले की पुलिस होली पर्व पर सुरक्षा व शांति व्यवस्था की ड्यूटी करती है और अगले दिन पुलिस लाइन, थानों व पुलिस चौकियों पर जमकर रंग खेलकर हुडदंग मचाती है।

पारंपरिक वेशभूषा में थिरकते नजर आते हैं थारू

होली के मौके पर थारू करीब एक माह तक होली मनाते हैं। अपनी परंपरागत आकर्षक पोशाक में थारू महिलाएं और पुरुष टोली बनाकर ढोलक, मृदंग, झांझ आदि वाद्ययंत्रों पर लुभावने होली गीत गाकर लोकनृत्य करते हैं। अपनी सीधी सरल भाषा में जब यह थारू होली गीत गाते हैं, तो देखने-सुनने वाले लोग भी थिरक उठते हैं। थारू नवयुवक और नवयुवतियां अपनी विशिष्ट वेशभूषा में शृंगार रस से पगे विभिन्न भाव भरे गीत गाते हुए ढोल एवं मृदंग की थाप पर नृत्य करते हैं। इनके ढोलक बजाने का ढंग और हाथ में मोरपंख या रूमाल लेकर नृत्य करते समय उनकी भाव भंगिमाएं मनोरम एवं रोचक लगती हैं। होली के मौके पर थारू नवविवाहिताएं भी अपने मायके आ जाती हैं और अपनी पुरानी सखी

सहेलियों के साथ दिल खोलकर होली खेलतीं हैं। होली पर जहां एक दूसरे पर जमकर रंग डालने की प्रथा है, वहीं होली पर घरों की विशेष सफाई, पुताई, रंगाई की जाती है। नेपाल व उत्तराखंड बार्डर पर इनका उल्लास देखते बनता है।

समाजसेवी संदीप बच्चों को बांटते हैं खुशियां

पूरनपुर के समाजसेवी संदीप खंडेलवाल प्रतिवर्ष बच्चों के साथ होली मनाते हैं। वे रंग, गुलाल, पिचकारी, मुखौटे देकर बच्चो के चेहरे पर मुस्कान देखना चाहते हैं।

इस लिंक से देखें वीडियो..

https://youtu.be/RmX0VFNqwMM?si=D6H_nio6AWt_dnGB

कवि शायरों के शब्द-रंग भी होली को करते हैं रंगीन

पीलीभीत जिले के कवि व शायर अपने अंदाज में होली मनाते हैं। कवि सम्मेलन, गोष्ठियां, हास्य कवि सम्मेलन व अन्य होली मिलन समारोह में कविता, गीत और हास्य व्यंग्य की महफिल जमती है।

इस लिंक से आप होली एलबम से चयनित करके यहां के कवि व कवयित्रियों के होली गीत व अन्य होली संबंधी रचनाएं सुन सकते हैं…

https://youtube.com/playlist?list=PLipEqo_Neri0bKfqfywD1v8glFCqXCk0h&si=JQAjwNjx2Eg4vKJS

आप सभी को समाचार दर्शन 24, संपादक सतीश मिश्र अचूक की तरफ से होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

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