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अचूकवाणी : रावण की उपमा देना अनुचित व अपमानजनक

रावण से तुलना अनुचित और अपमानजनक

महा विद्वान और परम ज्ञानी था दशानन, जानबूझ कर स्वयं के उद्धार के लिए भगवान श्री रामचन्द्र जी से किया था युद्ध

चुनाव में ऐरे गैरों को रावण बताना परम प्रतापी की मानहानि से कम नहीं

हास्य व्यंग्य-

सभी जानते हैं कि लंकाधिपति रावण महाज्ञानी था। परम विद्वान था। महा प्रतापी था। युद्ध कला में निपुण था। भविष्यवक्ता था और बलशाली तो इतना अधिक कि काल को भी बंधक बना लिया था। शनि देव को लंका में उल्टा लटका दिया था। लंका से स्वर्ग तक सीधी सीधी लगाने की योजना थी।
एक तरह से विश्व विजय की ओर बढ़ रहा रावण। इस बात से भी परेशान था कि उसका अंत कैसे होगा। ऐसे में जब भगवान श्री रामचंद्र जी अवतार लेते हैं तो रावण अपने अंत: ज्ञान से जान जाता है कि उनके हाथों ही उद्धार होगा और वह अपने उद्धार के लिए ही प्रभु राम से युद्ध करता है, और इस लोक को त्याग देता है। रावण द्वारा लिखी गई ज्योतिष की पुस्तक रावण संहिता आज भी काफी उपयोगी है और ज्योतिष की विवेचना में बहुत लाभकारी साबित हो रही है। ऐसे महान रावण को, चुनावी माहौल में किसी आम व्यक्ति से उसकी तुलना करके रावण का मान सम्मान कम किया जा रहा है। या यह कहा जाए कि गलत उपमाओं से रावण की मानहानि की जा रही है तो कतई अनुचित नहीं होगा। क्योंकि रावण जैसा विद्वान, बलवान भविष्यवक्ता अपने आप में दुर्लभ है। पूरे संसार में ऐसा विद्वान ना होने की बात कही जा रही है। ऐसे में किसी राह चलते व्यक्ति को, किसी टिकिया चोर को, किसी घमंडी को या किसी कुसंस्कारी व्यक्ति को रावण बता देना रावण का अपमान ही तो है। ऐसे लोगों को रावण की मानहानि करने से बचना चाहिए अन्यथा हो सकता है कि श्रीलंका अथवा भारत से ही मानहानि के मामले कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाएं। मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या कोई व्यक्ति मामूली घमंडी होकर, अहंकारी होकर अथवा छोटा-मोटा अपराध करने पर रावण जैसा बन सकता है? जबाब होगा कदापि नहीं। मेरे मत से ऐसे लोगों से रावण की तुलना करने वाले भी महामूर्ख ही हैं। उन्हें समझना चाहिए कि रावण ब्राह्मण कुल का गौरव था।

हैरत की बात तो यह है कि जिसे रावण कहा जा रहा है वह व्यक्ति भी प्रतिवाद करने के बजाय बड़ी बेशर्मी से खुद को ब्राह्मण कुल का बंशज बताकर एक और पाप लाद ले रहा है। शायद ऐसे में पापों की गठरी कम होने के बजाय बढ़ती ही जायेगी और यही व्यक्ति के पतन का कारण बन जाता है। जब किसी व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता नष्ट हो जाती है, उसकी जुबान पर अहंकार विराजमान हो जाता है तो वह स्वयं पतन की ओर अग्रसर हो जाता है परंतु ऐसे व्यक्ति को रावण की उपाधि देना, रावण कहना, मेरे हिसाब से बिल्कुल गलत है। यह अपराध जिन लोगों ने किया है वे भी क्षम्य नहीं हो सकते। ऐसे मित्रों से मेरा आग्रह है कि चुनाव में लगाने के लिए बहुत सारे आरोप प्रत्यारोप होते हैं जिन्हें आप राजी खुशी लगाइए। जिसका जैसा चरित्र है उसे खुलकर कहिए। कलियुग की उपमाएं दीजिए। साहस रखिए कि अभिमानी को अभिमानी, दुर्भाषी को दुर्भाषी और गलत को गलत कह पाएं। अगर कोई अतिशय कटुभाषी है तो उसे आप निसंकोच मुँहनुचवा कह दीजिये। हालांकि मेरे विचार से कटुभाषी साफ दिल का होता है और मृदुभाषियों यानी मीठी छुरियों की अपेक्षा ज्यादा अच्छा साबित होता है। कटुभाषी की बात आपको तुरंत खराब लगेगी परन्तु मृदु भाषी की बात लंबे समय तक पीड़ा व नुकसानदेय साबित होगी। मेरे मत से किसी भी वैदिक पात्र को चुनाव में घसीटना कदापि उचित नहीं है। क्योंकि ऎसा करके आप खुद का भी नुकसान कर रहे हैं। आप रावण के चरित्र का मर्दन कर रहे हैं परंतु शायद आपको पता नहीं है कि इस चुनाव में सकुनी व माहिल मामा भी बड़ी तादात में हैं। मारीच व स्वर्णमृग भी तलाशिये। मंथराओं व सूर्पनखाओं की तादात भी कम नहीं है। पराए धन पर कर्ण बनने वाले भी चुनावी दफ्तरों में मिल जाएंगे। वचनबद्ध व मौनव्रती भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य, कुलगुरु कृपाचार्य भी आसपास नजर आ जायेंगे। विभीषण जैसे भाइयों की कमी नहीं है इस माहौल में, फिर भइया अकेले रावण को ही काहे बदनाम किये हुए हो। क्यों उसकी इज्जत का फ़ालूदा बनाये हुए हो। साफ समझ लीजिए कि भगवान राम जी के चित्र में किसी का चेहरा लगाने से वह राम नहीं बन जाता और किसी के चेहरे पर रावण का चेहरा लगाने से वह रावण नहीं बनेगा क्योंकि राम व रावण बनने के लिए काफी अधिक महान बनना पड़ेगा जो आजकल के निरक्षर, अल्प शिक्षित या चरम चूतियों के बस की बात नहीं है। वे तो बस अपनी गंदी जुबान के कारण, गलत व्यवहार के कारण, अहंकार के कारण त्याज्य हो सकते हैं परंतु उन्हें रावण जैसी उपमा कदापि नहीं दी जानी चाहिए। ऐसा करने से महान ज्ञानी रावण भी अपमान महसूस करता होगा। मेरा ब्राह्मण महासभा के नाम पर राजनीति करने वालों से निवेदन है कि वे कृपया इस प्रकार की उपमाएं देने पर मौन साधकर न बैठें बल्कि शासन प्रशासन में ज्ञापन दें, एफआईआर दर्ज कराने के लिए पुलिस को तहरीर दें और सार्वजनिक रूप से इसका प्रतिवाद करें। क्योंकि ऐसा ना करने से लोगों के हौसले बढ़ते जाएंगे और यह आने वाले वक्त के लिए ठीक नहीं होगा। फिर तो हर किसी ऐरा गैरा, मतलबी, लालची को लोग रावण कह देंगे और जिसे कहेंगे वह भी खुद को महान ज्ञानी समझते हुए अपने को ब्राह्मणकुल का वंशज बताने लगेगा और यह तो ब्राह्मण कुल के गौरव का भी अपमान होगा। इसलिए अभी से चेत जाओ तो अच्छा है। वरना अगर रावण की तादाद बढ़ती गई तो हर वर्ष रामलीला में ना जाने कितने और पुतले बनाने व जलाने पड़ेंगे। जिससे व्यर्थ में इस महंगाई के दौर में खर्च बढ़ेगा और भगवान राम को भी अधिक मेहनत करनी पड़ेगी उसका संघार करने में। इसलिए मेरा अनुरोध है कि बेमतलब में रावण की उत्पत्ति मत कीजिए। एक सिर होने से वैसे ही वे न जाने कितने कुसंस्कार उगलते हैं, 9 सिर और बढ़ने से कुसंस्कारों, असभ्य भाषा प्रवाह की बाढ़ आ जाएगी और उन्हें झेलना मुश्किल हो जाएगा। यह भी जान लीजिए कि अगर आप किसी को रावण कहते हैं तो उसके साथ एक बड़ी राक्षस सेना भी तैयार होगी जिसके आचार विचार तो गलत होंगे ही आहार भी राक्षसों जैसा ही होगा जिसकी भरपाई भी इस महंगाई के दौर में मुश्किल होगी। चार लाइनों से अपनी बात समाप्त करता हूँ।

झूठी उपमाएं देते हैं उनको बिल्कुल भी ज्ञान नहीं।
रामचंद्र या रावण बनना इस युग में आसान नहीं।
दस सिर बीस भुजाओं वाला रावण नहीं दीखता है,
फिर चुनाव में लाने से क्या घटती उसकी शान नहीं।।
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