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अयोध्या यात्रा : पंडित जियालाल स्कूल सपहा के शिक्षक सचिन तिवारी की कलम से

आदरणीय को सादर समर्पित।

यात्रा चाहें जीवन की हो या फिर जीवन में निरन्तर की जा रही अनगिनत, अनवरत हो रही यात्राएं हों निश्चित ही हर यात्रा का अपना एक उद्देश्य होना चाहिए।
इसीलिए आज हम आपको एक ऐसी यात्रा कराने का प्रयास कर रहे हैं जिसमें आप सहर्ष हमारे साथ यात्रा करते नजर आएंगे।
मुझे याद है जब मैंने अपनी तमाम यात्राओं में से एक यात्रा को यात्रा वृत्तांत का रूप देने का सफल प्रयास किया था, मुझे लगता है कि आज फिर एक ऐसा क्षण आया है जब हम एक नया वृत्तांत लिखने लगे हैं तो क्यों न हम अपने नये युवा साथियों, सहयोगियों को बताते चलें कि कि हमारे विद्यालयी परिवार से संबंधित पिछला यात्रा वृत्तांत जिसे मैंने “हमारी नानकमता की पहली यात्रा” नामक लेख को 12-10-2015 में सजीवता के साथ आदरणीय पंडित जी की प्रेरणा से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया था।संबधित यात्रा वृत्तांत से आदरणीय ‘अचूक’ जी आदरणीय पंडित जी एवं वर्तमान प्रधानाचार्य मिश्र जी से मेरे आत्मविश्वास को बल मिला था।
अतः आज एक बार फिर मेरा द्वितीय यात्रा वृत्तांत पेश है, आशा करता हूं कि आप सब एक बार फिर मेरी लेखनी को अपना आशीर्वाद अवश्य प्रदान करेंगे।
यह यात्रा कोई निश्चित बिंदु तक एक सीमित दूरी की यात्रा न थी,                                  यह यात्रा कोई सुनियोजित इच्छापूर्ति हेतु मन की कामनाओं में बंधी हुई यात्रा भर न थी,
यह यात्रा केवल सैरसपाटा करने एवं घुमक्कड़ी प्रवृति के लोगो की मानसिक उपज न थी।
यह यात्रा थी असंभावनाओं में संभावनाओं की यात्रा 
यह यात्रा थी अंतर्मन को टटोलने की यात्रा 
यह यात्रा थी घृणा से प्रेम तक की यात्रा 
यह यात्रा थी युद्ध से बुद्ध तक की यात्रा 
यह यात्रा थी काम से राम तक की यात्रा 
यह यात्रा थी जड़ता से सृजन तक की यात्रा 
यह यात्रा थी नहर तट पर बसे हुए गांवों से लेकर सरयू तट पर बसी अयोध्या तक की यात्रा 
यह यात्रा थी प्रकर्ष की यात्रा 
यह यात्रा थी हर्ष की यात्रा 
यह यात्रा थी विमर्श की यात्रा।।
अब हम आपको कराते हैं सीधे यात्रा के दर्शन 
जय सियाराम।
अनवरत यात्राओं के संग्रह में एक नवीन यात्रा का प्रादुर्भाव जिसका श्रेय निसंकोच, निःसंदेह जिनकी शुचितापूर्ण सोच और मानसिक परिकल्पना बड़े भाई प्रदीप मिश्र जी की रही जिसको सार्थकता प्रदान करने में कोई कोर कसर न छोड़ी हमारे अजीज आदरणीय प्रधानाचार्य जी , हर घड़ी हमारे साथ खड़े रहने वाले शुभचिंतक हमारे चाचा आदरणीय रामनाम मिश्र जी का विशेष योगदान इस सुदूर, पुण्यगामी यात्रा को सार्थक, एवं सफल बनाने में रहा।
जिनके सबके प्रति मैं अपनी सहर्ष कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं ।
यात्रा हेतु सारे नियम, जिम्मेदारी का वितरण हो चुका है तारीख है 24 दिसंबर 2024 दिन मंगलवार प्रधानाचार्य जी द्वारा सबको शाम सात बजे अध्यक्ष जी के निज निवास पर सबको उपस्थित होने के साथ सभी साथी कुछ गुपचुप के साथ अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए।
बड़े भाई दिनेश बाजपेई मैं (सचिन तिवारी ) , और प्रधानाचार्य जी के बीच यात्रा संबंधित मंत्रणा हो ही रही थी कि संतोष जी का आगमन होता है और अपनी निकटम परीक्षाओं का हवाला देते हुए यात्रा में सम्मिलित न हो पाने की अनुमति प्राप्त कर अपने घर प्रस्थान करते हैं।
घड़ी अपनी स्वभाव के अनुरूप सात बजा चुकी थी। मैं, बाजपेई जी और अरविंद जी को साथ लेकर चाचा जी के घर पहुंच चुके हैं , कि तभी सर्वप्रथम 1008 श्री श्री श्री जगत दद्दा आदरणीय सुखदेव जी हमारे समक्ष प्रकट हुए और अपने अत्यंत मुलायमियत भरी वाणी में कहने लगे आ गए छोटे भइया मैने कहा हां दद्दा बिल्कुल।
तकरीबन 20 आत्माएं अपने आधार अर्थात शरीर के साथ खड़ी दिखी जिन्हें देखकर दोनों गाड़ियां भयभीत सी दिखी।
पर बेचारी कर भी क्या सकती थी, अपने हृदय की विराटता एवं उदारता का परिचय देकर हम सबको अपने विराट हृदय में स्थान दिया।
अपने बहुचर्चित नाम (eeco) का मान रखकर लगभग 19 लोगों को अपनी छाती पर थके हुए घोड़े की भांति कराहते हुए स्थान दिया।
परन्तु इसके बावजूद मनुष्य जो अपनी संवेदनाओं, भावनाओं की डींगे मारता फिरता है किसी को इन बेचारी पर तनिक भी दया न आई। और तो और अपनी निर्लज्जता और निर्ममता की सारी हदें पार करते हुए इनके कलेजे पर दो स्टूल नामक अपनी सुविधा जनक वस्तु रखकर बड़ी बहन bolero के समक्ष घोर अत्याचार किया और उसकी गरिमा, मर्यादा को तार तार किया, तत्पश्चात दोनों गाड़ियों के चालकों ने अपनी अपनी हिरनी को कान उमेठकर चलने के लिए आदेशित किया।
मढ़ी बाबा पर रुकना 
                         
हम सब लोग मढ़ी बाबा स्थान पर खड़े थे कि अचानक मेरे कान में तिवारी जी ओ तिवारी जी आओ यार मेरी गाड़ी में बैठते हैं कि आवाज सुनाई दी तो मैने देखा तो छोटे भाई रोहित उर्फ काले मिश्रा जी थे, मैं अब उनकी Swift नामक चीती पर सवार हो गया। चीती से तात्पर्य है उसके अपने मिजाज से क्योंकि मैंने उसके चर्चे पहले से सुन रखे थे । खैर!
अब हम लोग NH 730 पर पहुंच चुके थे, चीती क्या? मतलब असल चीती थी कभी 90 कभी 110 प्रति घंटे किलो मीटर की रफ्तार से बिना थके बिना रुके दौड़ रही थी।
और वहीं दोनों सौतेली बहनें हिरनी बेचारी अपने ऊपर लदे बोझ से जल्द ही थक जाती और उन्हें हर पचास km के बाद दाना पानी देना पड़ता।
और चीती उनके बेचारेपन का हम लोगों के साथ परिहास करती।
 बहराइच से पहले यादव जी का ढाबा 
                                                  ढाबे पर सबने कड़कड़ाती ठंड में सबने चाय पी प्रधान जी ने सबको अल्पाहार के रूप में सब्जी पूड़ी भी खिलाई।
आदरणीया अलका मैम जी ने सभी को स्वनिर्मित बिस्किट खिलाए जो सभी को खूब पसंद भी आए।
अब हम फिर आगे को बढ़ चले और यहां ईंट भट्टो की खान सी नजर आई पता चला बहराइच का क्षेत्र है थोड़ा और आगे बढ़े तो क्रमबद्ध तरीके से तमाम होर्डिंग्स लगे हुए जिनमें एक माननीय नजर आए उनका चित्र देखकर हम समझ गए गोण्डा में आ गए हैं।
होर्डिंग्स थे कुछ माह पूर्व अपने कृत्य से देश दुनिया में कुख्यात और विख्यात रहे माननीय बृजभूषण शरण सिंह जी जो हम लोगों का हाथ जोड़कर अयोध्या में पधारने हेतु आभार करते नजर आए।
सुबह के 3 बजने वाले थे हमारी चीती पर सवार हमारे साथी जिनका अभी तक जिक्र न हो पाया जो अत्यंत आवश्यक है आपको मिलवाते हैं साथ हैं चालक के रूप में नन्हें भइया जो एकदम मस्त गाड़ी चला रहे हैं, उनके हर आदेश को चीती बड़ी लगन, कर्तव्य समझकर पूरा करती है।
अगली सीट पर चीती के मलिकसाब काले मिश्रा जी वाकायदा चीती की प्रत्येक गतिविधि पर नजर गड़ाए हुए हैं।
पिछली सीट पर हमारी दाहिनी ओर सुप्रसिद्ध वकीलसाब jp ji हैं और बाईं ओर गंगाधर जो निरंतर अपनी तलप के वशीभूत मुंह पिच कर अपने होने का आभास कराते रहते हैं।
अयोध्या सरयू तट पर प्रवेश 
                                   
अब हम सब लोग सरयू तट पर पहुंच चुके हैं,ठंडी शीतल हवाएं बह रही हैं कुछ श्रद्धालु पहले से ही डुबकी लगाते नजर आ रहे हैं,कुछ साथीगण श्रदालुओं की डुबकियां देखकर खुद कांप रहे हैं लेकिन स्नान अनिवार्य है इसीलिए सभी लोग एक एक दो दो की टुकड़ियों में बंटकर नहाते हैं ।
सुबह के 6 बज चुके हैं सभी नहा धोकर एकदम तैयार हैं,और हनुमान गढ़ी की तरफ पैदल चल निकलते हैं।
प्रधानाचार्य जी एवं प्रदीप जी को टुकटुक के माध्यम से आने की सलाह प्रधान जी द्वारा जिसे स्वीकार कर लिया जाता है।
अब शुरू हो जाता है सेल्फी का दौर सभी अपनी अपनी सुविधानुसार अपने मिजाज की सेल्फी लेने में मसरूफ हैं,एक आध सेल्फी हम भी ले ही लेते हैं।
हनुमान गढ़ी 
       
प्रसाद खरीदने के वही पुराना प्रचलन और परंपरा का निर्वाह भइया हमे इक्यावन का, कोई कहता एक सौ एक का कोई चार तो कोई दो जगह के जूते प्रसाद वाले की दुकान में ठूंसकर आगे बढ़ते हैं।
सुबह का समय भीड़ कम जिस वजह हम सब वीना कुछ चुरवाए भलीप्रकार हनुमान जी के भलीभांति दर्शन करके राम लला के दर्शन हेतु आगे बढ़ते हैं।
राम लला का भव्य, दिव्य मंदिर 
                                         इतना भव्य, दिव्य, और विराट मंदिर मैने अपने जीवन के 32 वसंत में प्रथम बार देखा था, क्या हाईटेक व्यवस्था जूते जमा, मोबाइल, पर्स इत्यादि सामग्री अलग जमा करने की व्यवस्था, और सुरक्षा की क्या चाकचौबंद व्यवस्था।
मतलब अगर स्वर्ग से दशरथ जी अपने मंत्रियों संग आज की अयोध्या व्यवस्था पर विमर्श करते होंगे तो निश्चित ही उनके मंत्री स्वयं पर मुग्ध होने की बजाए लज्जा का अनुभव करते होंगे।
शिलाओं पर मूर्तिकारों द्वारा उकेरी गई देवी देवताओं की मूर्ति खजुराहो को भी आईना दिखाती सी प्रतीत होती हैं।
राम लला जी के दर्शन जी भर के करने का सौभाग्य भी मिला।
इधर दर्शन करने के बाद अब दौर शुरू हुआ मंदिर के बारे में अपने अपने तरीकों से व्याख्या करने का।
हम तो कह ही नहीं पाए,बस निहारते ही रह गए।
खैर आप सब श्री राम लला का भव्य, दिव्य मंदिर अवश्य देखकर आना।
दशरथ महल 
                 
एक महात्मा जी मात्र 1या डेढ़ फुट के बैठे सबको निहार रहे थे।
हम भी सिर्फ उन्हींको निहारते रह गए। अदभुत।
अब फोटो सेल्फी का दौर भी मंद पड़ चुका था, अयोध्या को लेकर मन उत्साह की भी गति धीमी हो रही थी 
आप पूछेंगे क्यों?
क्योंकि समय भी हो रहा था लगभग 11 बजे के आसपास का सबके चेहरों पर कृत्रिम मुस्कान, और आंखों में थकान के साथ भूख का तांडव भी नजर आ रहा था।
अतः आदरणीय गुरुदेव और प्रधानाचार्य जी ने एक जलपान युक्त दुकान पर हम सभी को पूड़ी सब्जी के साथ चाय की भी चुस्की दिलाई।
इसके बाद सभी ने अपने अपने यथा सामर्थ्य मेले में खरीददारी की।
किसी ने रामायण, किसी ने गदा, किसी ने गुड़िया इत्यादि वस्तुएं खरीदी।
अब हम सब वापस सरयू के तट पर आ चुके हैं, यहां हमने, हर्षित,दीपक,लवप्रीत,सोनल,रुचि, दर्शना आदि आदि ने प्रधानाचार्य की अनुमति पाकर नौकविहार का भी आनंद लिया।
तत्पश्चात हम सभी वापस घर के लिए रवाना हुए।
मौर्या ढाबा 
               
ढाबे पर रुककर हम सबने दाल रोटी को बड़े चाव से खाया।
और अब अब घर के लिए रवाना हुए ।
तकरीबन 2 बजे रात के लगभग हम सभी अपने यथास्थान पहुंच गए।
जय सियाराम, जय हनुमान जी की।।
अगर किसी बिंदु पर हम चर्चा करने में असफल रहे हों तो क्षमा करें।।
धन्यवाद।                 
आपका स्नेहकांक्षी 
 सचिन तिवारी 

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