
कहाँ बहे गोमती ? चकबंदी के समय ही हड़प ली गई जमीन
पीलीभीत। गोमती नदी जिले के जिन 16 ग्राम पंचायतों में बह रही है वहां गोमती के नाम जमीन है ही नहीं। कुछ गांवों को छोड़कर शेष गांवों में मौजूदा प्रवाह क्षेत्र तक राजस्व अभिलेखों से गायब है। ऐसे में नदी को वास्तविक स्वरूप में लाना और कठिन कार्य हो गया है। दरअसल हकीकत यह है कि चंद्र भूमाफिया गोमती की जमीन चकबंदी के दौरान अपने नाम करा कर पहले ही हड़प चुके हैं। अब जब तलाश हुई तो जमीन ही नहीं मिल पा रही है। गोमती के अविरल बहाव में यह भी सबसे बड़ी बाधा है।
जनपद में मशीनों व मनरेगा से हुई खोदाई के बाद गोमती नदी एक नाले के रूप में नजर आती है। हालांकि बरसात में इसका प्रभाव क्षेत्र काफी अधिक बढ़ जाता है परंतु आज के बहाव की जमीन भी गोमती के नाम नहीं है। ऐसे में गोमती की धारा को अविरल बहाने व उसके चौड़ीकरण की मंशा भी धूमिल हो रही है। कलीनगर एसडीएम व ट्रस्ट के अध्यक्ष आशुतोष गुप्ता द्वारा शुरू किए गए प्रयासों को इसके चलते सफलता नहीं मिल पा रही है। उन्होंने लेखपालों से नदी की जमीन का विवरण मांगा था परंतु अधिकांश गांव में राजस्व अभिलेखों में गोमती का अस्तित्व मिला ही नहीं। एसडीएम ने मौजूदा स्वरूप के गाटा संख्या व अन्य विवरण तलब किया है ताकि जमीन को गोमती के नाम दर्ज कराया जा सके। जमीन न मिलना एक बहुत बड़ी समस्या है। हालांकि वर्ष 2018 में तत्कालीन जिलाधिकारी डॉक्टर अखिलेश मिश्रा और कलीनगर की तब की एसडीएम पुष्पा देवदार ने निजी प्रयासों से काफी अधिक जमीन लोगों से दान करवा व छुड़वाकर गोमती का एक प्रवाह क्षेत्र तैयार कराया था। पूर्व जिलाधिकारी पुलकित खरे द्वारा गोमती की खोदाई कराकर पदयात्रा की गई और कब्जे हटाने के प्रयास किए गए परंतु उस समय भी कब्जे नहीं हट पाए। अब एक बार फिर से प्रयास शुरू हुए हैं परंतु उनके अंजाम तक पहुंचने में बहुत बड़ी बाधा नदी के नाम जमीन न होना है। गत दिवस कलीनगर तहसील के गोमती सभागार में हुई बैठक में यह मुद्दा छाया रहा। एसडीएम चाहते हैं की नदी का प्रवाह क्षेत्र तय हो और इसे अभिलेखों में स्थान मिले परंतु मौजूद राजस्व अभिलेख कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। माधोटांडा के पूर्व प्रधान व संस्थापक ट्रस्टी राममूर्ति सिंह आदि लोगों ने बताया कि चकबंदी से पहले गोमती का नाम जमीन दर्ज थी जिसे कुछ लोगों ने अपने नाम दर्ज करा लिया था। इसमें राजस्व व चलबन्दी विभाग के लोगों की भी मिलीभगत बताई जाती है। उन्होंने यह भी मांग रखी कि यदि चकबंदी के पूर्व के अभिलेख निकलवाए जायें तो नदी की जमीन का पूरा विवरण मिल सकता है।
पूरनपुर के राजस्व अधिकारी मौन
गोमती ट्रस्ट की पिछली कई बैठकों में पूरनपुर के एसडीएम व तहसीलदार नहीं पहुंचे हैं, जबकि ट्रस्ट में दोनों अधिकारी महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं और गोमती नदी का अधिकांश भाग पूरनपुर तहसील में ही पड़ता है। ऐसे में गोमती नदी की जमीन से कब्जे हटाने व प्रवाह क्षेत्र तय करने में पूरनपुर तहसील प्रशासन की बड़ी भूमिका होनी चाहिए परंतु अधिकारियों के मौन धारण करके दिलचस्पी न लेने से इसको धक्का लग रहा है। त्रिवेणी घाट घाटमपुर, आसाम रोड गोमती पुल आदि स्थानों से नदी की जमीन से अवैध कब्जे हटवाने में भी अफसरों की बड़ी लापरवाही सामने आई है।
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