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टीएमयू जैन फैकल्टीज़ की दमदार प्रस्तुति ने जीता दिल

उत्तम संयम धर्म पर हुई शीतलनाथ जिन पूजा, सोलहकारण पूजन, पंचमेरु पूजन और दशलक्षण पूजन,सुगंध दशमी के उपलक्ष्य में प्रतिष्ठा आचार्य श्री ऋषभ शास्त्री जी ने कराई धूप खेवन विशेष पूजा

मुरादाबाद। तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी की फैकल्टी मेंबर्स की ओर से सांस्कृतिक सांझ को अविस्मरणीय प्रस्तुति दी गई। पहली बार इस जानदार परफॉर्मेंस में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के संकल्प से सिद्धि तक दर्शाया गया। ऑडी में आयोजित इस कल्चरल ईवनिंग का कुलाधिपति श्री सुरेश जैन और एल्युमिनीज ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित करके किया। इस मौके पर कुलाधिपति के संग- संग फर्स्ट लेडी श्रीमती वीना जैन, जीवीसी श्री मनीष जैन जी , श्रीमती ऋचा जैन, एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर श्री अक्षत जैन, सुश्री नंदिनी जैन की भी उल्लेखनीय मौजूदगी रही। दूसरी ओर दशलक्षण महापर्व के छठवें दिन उत्तम संयम धर्म पर ब्रह्मचारी ऋषभ जैन शास्त्री के मार्गदर्शन में शीतलनाथ जिन पूजा, सोलहकारण पूजन, पंचमेरु पूजन और दशलक्षण पूजन की गई। आज सुगंध दशमी के उपलक्ष्य में धूप खेवन पूजा और विधान आचार्य प्रणम्य सागर महाराज द्वारा रचित वर्धमान महावीर विधान भी किया गया। जल शुद्धि,दिकबंधन- सुश्री नंदिनी जैन,विधान कलश स्थापना के तहत मुख्य कलश- जीवीसी श्री मनीष जैन और श्रीमती ऋचा जैन,जबकि चार कलश श्रीमती सुनीति जैन, डॉ. नम्रता जैन, डॉ. अर्चना जैन , श्रीमती अहिंसा जैन की ओर से विराजित किए गए।विधान में चौसठ अर्घ्य समर्पित किए गए। इस रचना में बसन्ततिलका छंद के काव्य थे। विभिन्न बीजाक्षरों से युक्त मंत्रों के साथ वाचन् किया गया।

रिद्धि सिद्धि भवन में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी ब्रह्मचारिणी् कल्पना जी जैन की। उन्होंने बताया कि टीएमयू में 2012 से दशलक्षण महापर्व पर मनाया जा रहा है। श्री संजय जैन ने मंगलाचरण गान की प्रस्तुति दी … पल पल दिल के पास प्रभु रहते हैं, जबकि फैकल्टी मेंबर्स ने तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी की स्थापना से लेकर अब तक की विकास यात्रा दर्शाई। कैसे तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री सुरेश जी जैन ने पीतल नगरी को शिक्षा नगरी बनाने का सपना देखा। वर्ष 2001 में दृष्टि भूषण माताजी एवं सृष्टि भूषण माता जी का आगमन हुआ। उन्हीं की आशीर्वाद और प्रेरणा से 2001 में टीएमएमआईटी की स्थापना हुई। किसकी प्रेरणा से इसका नाम भगवान महावीर स्वामी के नाम पर रखा गया। वर्ष 2005 में मुनि श्री सौरव सागर जी महाराज की प्रेरणा से डेंटल कॉलेज की स्थापना हुई। वर्ष 2008 में तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। वर्ष 2011 में ब्रह्मचारिणी सपना दीदी ने प्रथम महिला श्रीमती बीना जैन जी से यूनिवर्सिटी में मंदिर बनने की इच्छा प्रकट की। अंततः 2012 में तीर्थंकर महावीर जिनालय की स्थापना हुई। फैकल्टी मेंबर्स ने नृत्य प्रस्तुति की गई…पर्व पर्युषण आया छाई खुशियों की।
तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय में नए-नए कॉलेजों की स्थापना हुई। जिनालय में रिद्धि सिद्धि भवन का निर्माण हुआ। अहिंसा ही दुनिया का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए। हमें महावीर स्वामी को ढूंढने की जरूरत नहीं है। महावीर स्वामी हमारे हृदय में निवास करते हैं। हम महावीर के सिद्धांतों पर चलते हुए अपने जीवन को साकार कर सकते हैं।
नृत्य प्रस्तुति …हर दिल में नाम तुम्हारा है हम हैं महावीर तेरे तू हमारा है, जैनों की पहचान महावीर , दर्श दिखा दे महावीर…
अत्यंत मनमोहक संगीतमय प्रस्तुति भी दी गई …बाबा जिनका नाम पुकारे किस्मत वाले होते हैं , चलो बुलावा आया है बाबा ने बुलाया है । सामूहिक इस कार्यक्रम में प्रो. एसके जैन, प्रो. विपिन जैन, श्री मनोज जैन,श्री विपिन जैन,प्रो. आरके जैन, डॉ. विनोद जैन, श्री आशीष सिंघई,श्री आदित्य जैन,श्री आदित्य विक्रम जैन,डॉ. अक्षत जैन, श्री संजय जैन,श्री वैभव जैन, श्री सार्थक जैन आदि ने भाग लिया। इससे पूर्व रिद्धि – सिद्धि भवन में शनिवार संध्या की आरती फैकल्टी मेंबर्स ने की। प्रतिष्ठा आचार्य श्री ऋषभ शास्त्री जी ने श्री मानतुंगाचार्य द्वारा रचित श्री भक्तांबर स्रोत का पाठ वाचन किया । दूसरी ओर तीर्थंकर महावीर ऑडिटोरियम में श्री शास्त्री जी ने प्रवचन दिए। प्रवचन के पश्चात सांस्कृतिक कार्यक्रमों का श्रीगणेश हुआ। अंत में पैरामेडिकल कॉलेज तथा नर्सिंग कॉलेज के अंतिम वर्ष के छात्रों को सम्मानित किया गया।

भोपाल से आई सुनील सरगम एंड पार्टी ने संगीतमय प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया। आस्थमय भजनों से सम्पूर्ण रिद्धि – सिद्धि भवन झूम उठा। फूलों का तारों का सबका कहना है, तुमने भक्तों में किया जादू रे, रंगमा रंगमा रंगमा म्हरे रंग में रंग गए रे, मेरी अच्छी अच्छी मम्मी मेरे अच्छे अच्छे पापा मुझे जिनदर्शन कराया, अरे सच्चा गुरु का संदेश जहाँ तुम चले गए, महावीरा बोलो महावीरा,खुशियों की आयी देखो बेला मंदिर में लगेगा मेला, चलो रे चलो मंदिर चलो कहार, पंखिड़ा ओ पंखिड़ा, मेरी तो पतंग उड़ चली रे, आओ रे भक्ति भरा मौसम सुहाना, मैं निकला गड्डी ले के और सड़क पे, मोड़ आया मैं मिल आया अपने गुरुवर से, ढोल बजे ढोल बजे डम डम बजे रे, विद्यासागर नाम रे विद्या का धाम रे, जब मन कही न लगे टीएमयू आना, थिरकने लगे हमारे कदम विद्यासागर के संग- संग, भजनों से संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो गया और सभी ने झूम – झूमकर पूजा अर्चना और भक्तिनृत्य किया।

रिद्धि सिद्धि में श्रीजी का प्रथम स्वर्ण कलश से संकल्प जैन, द्वितीय स्वर्ण कलश से दर्शन जैन,तृतीय कलश से भावेश जैन और चतुर्थ स्वर्ण कलश से आयुष जैन को अभिषेक करने का सौभाग्य मिला। श्रीजी की स्वर्ण कलश से शांतिधारा करने मेडिकल छात्रों के समूह और रजत कलश से शांति धारा करने का सौभाग्य डॉ. अश्विनी जैन को मिला। जिनवाणी विराजमान करने का सौभाग्य डॉ. सौम्या भाईजी को और दीप प्रज्जवल का अक्षिता जैन ने प्राप्त किया।
साथ ही अष्ट प्रातिहार्य का सौभाग्य अष्ठ कन्याओं – आयुषी जैन, शिवली, भव्य अजमेरा, श्रुति , खुशबू, विदूषी , दीक्षा और सेपल जैन ने प्राप्त किया। मुरादाबाद के विभिन्न मंदिरों से श्रावक के अलावा शहर, अमरोहा,रामपुर,बिजनौर और आसपास के जिलों से भी जैन समाज के प्रतिनिधि दर्शन करने आए और संगीतमय पूजन के साक्षी बने।

रिद्धि सिद्धि भवन में प्रतिष्ठाचार्य श्री ऋषभ शास्त्री ने कहा – आरती में बार- बार बाबा शब्द के इस्तेमाल की उपयुक्तता विचारणीय है।सुगंधदशमी व्रत करने का कारण बताया। कभी भी अपने धन,पद, मान का उपयोग किसी के अपमान में न करे। पुण्य का प्रभाव ही आपको सद्गति और जीवन में उपलब्धियां दिलवाता है। मुनिराज का अपमान या निंदा करना ठीक नहीं है। एक सुंदर राजकुमारी ने मुनि पर थूका था, जिससे उसे उसी पर्याय में कोढ़ हो गया था । बाहर के कर्मों की शुद्धि करने हम अंदर की यात्रा करते है और जिन दर्शन कर पुण्य कमाते हैं। देव, शास्त्र, और गुरू की निंदा कभी नहीं करना चाहिए। दशलक्षण पर्व का षष्टम पंचम दिवस उत्तम सत्य धर्म का होता है। उत्तम संयम धर्म पर बोलते हुए कहा , एक घरी मत विसरो करो नित, आव जम मुख बीच में अर्थात आप एक पल के लिए न भूले आप यमराज के मुख में हैं। जब आपकी मृत्यु आएगी तो आप रोक नही पाएंगे। मृत्यु के पश्चात मृत शरीर का कोई नाम नहीं होता है। हम इतना व्रत तो ले सकते हैं कि सोने के बाद और उठने के पहले चारों तरह के आहारों का त्याग और व्रत लेकर इनकी पालना से उत्तम संयम धर्म की पालना हो जाती है। भिखारी की कहानी भी सुनाई। मुनि प्रणम्य सागर महाराज द्वारा रचित श्री वर्द्धमान स्तोत्र से पूजन विधान किया गया। संगम देव ने भगवान महावीर पर उपसर्ग की कहानी सुनाई। संजय और विजय दो ऋद्धिधारी मुनीश्वर के कारण सन्मति नाम पड़ा। वर्धमान चारित्र के कारण ही भगवान का नाम वर्द्धमान पड़ा। भगवान के चरणों मे जो फूल होते है वे पृथ्वीकायक पुष्प होते है। धर्ममय माहौल में तत्वार्थसूत्र जैसे संस्कृत के क्लिष्ट शब्दों वाली रचना के षष्ठम अध्याय संस्कार जैन छात्र ने बड़े ही रोचक और भावपूर्ण तरीके से किया।

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